शहर में अगले तीन दिन तक लॉकडाउन के चलते सरकार ने नियम कड़े कर दिए हैं। यहां अब जनता को पूरी तरह से घर में रहने की हिदायत दी गई है। अगर कोई भी सड़क पर नजर आएगा, तो उसे जेल की सजा भी हो सकती है। वहीं दूसरे शहर से आए मजदूरों के पलायन का सिलसिला भी लगातार जारी है। कोई राजस्थान से चलकर आ रहा है तो कोई शहर से खंडवा के लिए चल पड़ा।इधर दो बाइक पर पांच युवक अपने घर के लिए कानपुर के लिए निकले। दैनिक भास्कर ने लॉकडाउन के पांचवे दिन शहर के हालात जाने....
रिपोर्ट 1: 70 साल की प्रेमा बाई तो 5 साल का मयंक परिवार के साथ चल रहा पैदल
(मैं राघवेंद्र बाबा। जानता हूं कि खतरों के बीच अपना पत्रकारिता धर्म निभा रहा हूं। इसलिए, क्योंकि मेरे परिवार के साथ-साथ भास्कर के लाखों पाठकों के परिवार को भी आज मेरी सबसे ज्यादा जरूरत है।)
इंदौर में सुबह 11 बजे मैं घर से निकलकर पुलिस कंट्रोल रूम पहुंचा। वहां देखा की पांच-छह फीट की दूरी पर करीबन 40 युवक बाहर बैठे हुए हैं। उनके पास छोटी ग्वालटोली टीआई आकर रुके और हालचाल जाना। टीआई बोले कुछ व्यवस्था हो जाएगी, अभी तो उन्हें राहत के रूप में भोजन मिल गया है। मैं रिजर्वेशन सेंटर की तरफ जा रहा था तभी 70 साल की एक वृद्धा कुछ लोगों के साथ पैदल जाती दिखीं। उन्हें रोककर पैदल जाने का कारण पूछ लिया। वृद्धा जोर से बोलीं भैया भागीरथपुरा में रहने वाले बेटे सुनील के घर पौते के जन्मदिन पर आई थी। कर्फ्यू लग गया। यहां कुछ भी खाने को नहीं है। इसलिए मैं पैदल निकली हूं। साथ में बेटा सुनील, बहू और पोता व अन्य रिश्तेदार भी हैं। हम लोग तीन-चार दिन में खंडवा तक पहुंच जाएंगे। वृद्धा बोली 70 साल की हूं, लेकिन हिम्मत नहीं हारूंगीं। प्रशासन ने भले ही कोई मदद नहीं करवाई हो, लेकिन मैं चलती जाऊंगी और अपनी मंजिल तक पहुंच जाऊंगी।
खाने का इंतजाम ही नहीं, खंडवा पैदल चल दिए
वृद्धा से बात करता हुआ मैं आगे बढ़ा और भंवरकुआं चौराहे पर पहुंचा। यहां टीआई विजय सिह सिसौदिया के नेतृत्व में एसआई नेहा ओरा जैन और सीमा धाकड़ की टीम चेकिंग कर रही थीं। हर आने-जाने वाले वाले वाहन को रोककर पूछा जा रहा था। तभी एसआई नेहा ने दो बाइक को रोका। एक पर तीन युवक बैठे थे। दूसरी पर एक युवक-युवती और एक बड़ी सी पोटली थी। एक बाइक पर तीन बैठे देख नेहा ने उन्हें डपटा, तो युवक रुआंसा हुआ। बोला मेडम कोई चारा नहीं है, जीने का। बस भाग रहे हैं। यहां से...। कुछ खाने को नहीं है। बड़वानी से बाइक से निकले हैं। नेहा बोली कि बाइक की हवा निकाल तो वह गिड़गिड़ाया। बोला मेडम यहां से 800 किमी दूर कानपुर जाना है।
चोरल से आगे जाना, बच्चों को गोद में लेकर चल दिए
दोपहर 2 बजे तेजाजी नगर बायपास पहुंचा तो वहां 40 लोगों की टोली आती दिखी। इनमें एक दंपती अपने दो छोटे-छोटे बच्चे के साथ थी। पूछा तो बोला कि मेरा नाम राधेश्याम है। राजस्थान का रहने वाला हूं। खंडवा से आ रहा हूं। 40 लोग पैदल निकले हैं। बायपास से जाएंगे। किसी भी अफसर ने कोई व्यवस्था नहीं की है। मजबूरी भोजन की है इसलिए जा रहे हैं, वरना पैदल कौन जाता। पांच साल का मयंक भी माता-पिता के साथ पैदल चल रहा है। पिता बोले कि हम लोग चोरल से आगे जाएंगे। प्रशासन ने तो कोई मदद नहीं की। रास्ते में समाज सेवी जरूर मदद कर रहे हैं। तेजाजी नगर में संघ से जुड़े लोगों ने खिचड़ी खिलाई। मां के सिर पर पोटली है और पिता की गोद में छोटा भाई, इसलिए मयंक को पैदल चलना पड़ रहा है।
रिपाेर्ट -2: एमवाय अस्पताल में सामान्य ओपीडी और पीसी सेठी में डायलिसस बंद
(मैं नीता सिसोदिया। जानती हूं कि खतरों के बीच अपना पत्रकारिता धर्म निभा रही हूं। इसलिए, क्योंकि मेरे परिवार के साथ-साथ भास्कर के लाखों पाठकों के परिवार को भी आज मेरी सबसे ज्यादा जरूरत है।)
इंदौर में कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते बीपी, किडनी सहित अन्य बीमारियों के मरीजों और गर्भवतियों को इलाज के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। सभी को सरकारी अस्पताल भेजा जा रहा है। कुछ महिलाएं पहली बार एमवाय और पीसी सेठी अस्पताल आई थीं। डॉक्टर ने जब हिस्ट्री पूछी तो बताया कि निजी अस्पताल में इलाज चल रहा था। वहां डिलीवरी के लिए गए थे तो कहा कि अस्पताल बंद है। एमवायएच जाओ। पीसी सेठी अस्पताल। यहां की डायलिसिस यूनिट बंद कर दी गई है। अरिहंत अस्पताल से भी ऐसे मरीजों को लौटा दिया गया। गोकुलदास अस्पताल की भी यही स्थिति है। पूरे शहर से इस तरह की शिकायतें मिलने के बाद रविवार शाम को सभी अस्पतालों के डायलिसिस सेंटर की जानकारी स्वास्थ्य विभाग ने मंगाई है। किडनी की खराबी से जूझ रहे मरीजों को सप्ताह में दो बार डायलिसिस की जरूरत होती है। ऐसे में निजी अस्पताल कोरोना वायरस संक्रमण के डर से डायलिसिस यूनिट भी संचालित नहीं कर रहे हैं। शहर के सभी प्रमुख अस्पतालों में यह समस्या आ रही है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि हमारी जानकारी में यह मामला आया है। अस्पताल संचालकों से इस बारे में बात कर रहे हैं।
एमवाय: जिला प्रशासन ने अस्पताल को पूरी तरह से फ्लू ओपीडी में तब्दील कर दिया है। सामान्य ओपीडी सेवा बंद कर दी है। हालांकि यहां ओपीडी बनाए जाने को लेकर लोगों में डर है। एमवायएच की नई ओपीडी में सर्दी जुकाम और बुखार के मरीजों को देखा जा रहा है, लेकिन इसके पास कैंसर हॉस्पिटल भी है। चाचा नेहरू अस्पताल जाने के लिए भी लोग इसी रास्ते से जाते हैं, इसलिए स्टाफ भी डरा हुआ है।
ग्रीन, यलो और रेड जोन में अस्पतालों को बांटा, ताकि आम मरीजों को मिलेे इलाज
इंदौर में निजी क्लीनिक्स बंद हैं। मरीजों को लौटाया जा रहा है। फोन पर भी बात नहीं हो पा रही। शहर के सभी अस्पतालों को रेड, ग्रीन और येलो जोन में बांटा जा रहा है। शहर के सभी निजी अस्पतालों को इन श्रेणियों में डाला जाएगा, ताकि मरीजों को परेशानी नहीं हो और हर बीमारी का इलाज हो सके। अभी ऐसा देखा जा रहा है कि छोटे क्लिनिक्स, नर्सिंग होम बंद है। बड़े अस्पतालों में यदि कोई जुकाम पीड़ित पहुंच जाए तो वे डर जाते हैं। कई बड़े अस्पतालों में स्टाफ कम हो गया है। वे काम पर नहीं आ रहे हैं। एक निजी अस्पताल में यह स्थिति भी बनी कि डॉक्टर को फार्मेसी पर मोर्चा संभालना पड़ा। इसलिए अब यह नई व्यवस्था की जा रही है।
ग्रीन जोन अस्पताल
शहर के हर कोने में ऐसे निजी अस्पताल चिह्नित किए जाएंगे जहां सर्दी-जुकाम, बुखार के अलावा अन्य बीमारियों के मरीजों का इलाज किया जाएगा। इनमें फ्लू पीड़ित किसी मरीज को नहीं देखा जाएगा। इस जोन में मिलिट्री हॉस्पिटल महू, सीएचएल, अपाेलो हॉस्पिटल, एमवायएच, भंडारी अस्पताल व लाइफ केयर हॉस्पिट शामिल हैं
येलो जोन अस्पताल
इन अस्पतालों में सर्दी-जुकाम, बुखार पीड़ित मरीजों को रखा जाएगा। संदिग्ध मरीज भी रहेंगे। इसमें गोकुलदास अस्पताल, विशेष अस्पताल, सिविल अस्पताल महू, सिनर्जी अस्पताल, मयूर हॉस्पिटल, ग्रेटर कैलाश अस्पताल, एपल हॉस्पिटल, विशेष अस्पताल, पीसी सेठी अस्पताल, बांबे हॉस्पिटल, इंडेक्स मेडिकल कॉलेज
रेड जोन अस्पताल
इनमें कोरोना पॉजीटिव मरीजों को रखा जाएगा। एमआर टीबी अस्पताल, चेस्ट सेंटर, एमटीएच, सेम्स शामिल हैं।
अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती संक्रमितों को टीबी अस्पताल भेजा
इंदौर शहर के अलग-अलग निजी अस्पतालों में भर्ती कोरोना संक्रमित मरीजों को रविवार को एमआर टीबी अस्पताल में शिफ्ट करने के आदेश दिए गए। जिसके बाद देर शाम को संक्रमित मरीजों को यहां शिफ्ट किया गया। शनिवार को जिला प्रशासन ने यह निर्णय लिया है कि अब से पाजीटिव मरीजों को सिर्फ एक ही अस्पताल में रखा जाएगा। जिसके बाद रविवार को इस आदेश पर अमल करना शुरू कर दिया गया। मरीजों को एमआर टीबी अस्पताल और श्री अरबिंदो इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस में भर्ती होने का विकल्प दिया गया।
इधर, तीन दिन में भी शुरू नहीं हो पाया गोकुलदास अस्पताल, स्टाफ चला गया
इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज ने मरीजों की देखभाल के लिए गोकुलदास अस्पताल को अधिग्रहित किया है, लेकिन तीन दिन बाद भी अस्पताल शुरू नहीं हो पाया है। कॉलेज प्रशासन ने संदिग्धों को रखने के लिए 120 बेड के गोकुलदास अस्पताल को स्टाफ सहित अधिग्रहित किया था। बताया जा रहा है कि गोकुलदास अस्पताल का स्टाफ जा चुका है। ऐसे में अस्पताल शुरू भी हो जाता है तो वहां काम कौन करेगा। जबकि एमजीएम कॉलेज ने स्टाफ को वेतन देने की भी व्यवस्था की है। अस्पताल शुरू नहीं होने की स्थिति में पॉजिटिव और संदिग्धों के साथ उनके परिजन भी परेशान हो रहे हैं। अस्पताल जल्द शुरू हो जाए तो सैकड़ों पीड़ितों को इसका फायदा मिलेगा। फिलहाल पीड़ितों को असरावद खुर्द में रखा जा रहा हैं।
इधर, अजमेर से महाकाल और ओंकारेश्वर दर्शन करने के लिए आए म्यूजिक टीचर पांच दिन से परिवार सहित इंदौर में फंस गए
इंदौर में कोरोना वायरस से बचाव के लिए देश में 21 दिन का लॉकडाउन घोषित होने के बाद जो जहां था, उसे वहीं रोक दिया गया। इसके बाद से कुछ लोग इंदौर में भी फंसे हुए हैं। ऐसे ही अजमेर निवासी एक म्यूजिक टीचर संजय झंझट भी हैं जो पांच दिन से परिवार सहित यहां फंसे हुए हैं।
40 वर्षीय संजय ने बताया- मैं पत्नी और दो बेटों के साथ 19 मार्च को ट्रेन से इंदौर में रहने वाली बड़ी बहन के घर पहुंचा। परिवार के साथ महाकाल और ओंकारेश्वर दर्शन करने के लिए गया था। कोरोना के कारण दर्शन करने के लिए जा ही नहीं पाए और इंदौर में ही फंस गए। शिव सिटी निवासी 45 वर्षीय किरण घूघरवाल ने बताया कि बेटों की परीक्षा खत्म होने के बाद छुटि्टयां मनाने के लिए 18 मार्च को मां के घर भोपाल आई थीं, लेकिन यहीं अटक गए। अब लॉक डाउन खुलने का इंतजार है। गनीमत है कि कहीं रास्ते में नहीं फंसे या कहीं घूमने नहीं गए, वरना बहुत परेशानी होती।