ग्राउंड जीरो से भास्कर / पलायन, बाजार और अस्पताल से जुड़ी 4 रिपाेर्ट: सिर छुपाने की जगह तो दूर भोजन तक नहीं, ढाई सौ ग्राम दूध में निकाले तीन दिन

कोरोना वायरस के खौफ ने हर वर्ग को डरा कर रख दिया है। शनिवार को दिल्ली से लगी यूपी की बाॅर्डर पर जिस तरह हजारों लोग अपने घर जाने के लिए इकट्ठा हो गए थे, उसी तरह इंदौर में भी काम कर लोग अपने घर जाने के लिए पैदल ही निकल गए हैं। हालांकि इनकी संख्या दिल्ली जितनी नहीं है, लेकिन शहर की हर सड़क पर पैदल जाते लोग दिख जाएंगे। रविवार को भास्कर ने ऐसे ही लोगों से रुककर बात की तो सबने अपनी अलग कहानी बताई। सब का कहना है घर जाना। कीमत कुछ भी हो। 14 तक लॉकडाउन है। काम, मजदूरी मिलना नहीं है। हम भी इतने दिन में पैदल चलकर घर चले जाएंगे। 


रिपाेर्ट -1: सड़कों से- मैं राहुल दुबे। जानता हूं कि खतरों के बीच अपना पत्रकारिता धर्म निभा रहा हूं। इसलिए, क्योंकि मेरे परिवार के साथ-साथ भास्कर के लाखों पाठकों के परिवार को भी आज मेरी सबसे ज्यादा जरूरत है।


हम रोज खड़े रहते हैं, कोई मदद करने नहीं आ रहा


खजराना चौराहा के सर्विस रोड 15-20 मजदूर। सिर छुपाने की जगह तो दूर खाना तक नहीं है। रानी भार्गव एक महीने की बच्ची को कंबल में लपेटे हुए मुझे एक हाथ से रुकने का इशारा करती दौड़ती हुई आई। बोली-साहब हम आठ दिन से यहां फंसे हैं। गंजबासौदा जाना है। बच्ची कैसे इतना लंबा सफर गोद में रहकर पूरा करेगी। तीन दिन पहले ढाई सौ ग्राम दूध लिया था। तीन दिन से चला रही हूं। सब बोल रहे हैं कि पुलिस, प्रशासन खाना, पानी दे रही है। हम रोज सुुबह खड़े रहते हैं लेकिन कोई मदद करने नहीं आ रहा। पैसे भी सब खत्म हो गए हैं। 


सूरत से आ रहे हैं, पटना जा रहे, यहां रास्ता भटक गए


रीगल पर एक लोडिंग वाहन। ड्राइवर महेंद्र से पूछा कहां जा रहे हो इतने लोगों को लेकर। बाेला सर- सूरत से आ रहे हैं, पटना जाना हैै। ये सारी लेबर वहां साड़ी केे कारखानों में काम करती है। बायपास जाने का रास्ता नहीं मिल रहा। गाड़ी इसलिए तेज चला रहे हैं कि कोई पुलिस वाला नहीं रोक ले। पीछे बैठे मजदूर जगदीश से पूछा कि यह मुंह पर गमछा क्यों लपेटा है तो वो बोला- कई कीड़ा, जानवर की बीमारी चल रही है। मुंह पे नी लग जाए इसलिए लपेटा है। उनसे पूछा कि पटना तक जाना है। खाने का क्या  इंतजाम है। वो बोले-खाना मिले ना मिले हमको बस गांव पहुंचना है।


धर्मगुरु कर रहे अपील, घरों में रहकर ही खुदा की इबादत करें


रिपाेर्ट -2 खजराना से- मैं मोहम्मद जाहिद। जानता हूं कि खतरों के बीच अपना पत्रकारिता धर्म निभा रहा हूं। इसलिए, क्योंकि मेरे परिवार के साथ-साथ भास्कर के लाखों पाठकों के परिवार को भी आज मेरी सबसे ज्यादा जरूरत है।


इंदौर के खजराना में कोरोना पॉजिटिव केस निकलने के बाद मेन रोड पर सुबह से ही सख्ती दिखती है। सारी गलियां बैरिकेड्स लगाकर सील कर दी हैं। दरगाह, मस्जिद, मंदिर बंद हैं। मस्जिदों से एनाउंसमेंट किए जा रहे हैं कि लोग घरों से न निकलें। नमाज भी घर में रहकर ही अदा कर लें। हिफाजत और तदबीर ही इस बीमारी से बचाएगी
सुन्नी आइम्मा काउंिसल के सचिव आरिफ बरकाती व मदरसा रियाजुल उलूम के रेहान फारूकी कहते हैं हिफाजत और तदबीर से ही आप इस बीमारी से बच सकेंगे। इसी में खुद की, समाज की, शहर की और पूरे मुल्क की भलाई है। डॉ. जाहिद नूरानी ने कहा इस बीमारी का इलाज सिर्फ यही है कि लॉकडाउन का सौ फीसदी पालन किया जाए। हमारे पास अभी भी वक्त है। घर में रहें, जो मिल रहा है, उससे काम चलाएं। हम सभी की आजमाइश है कि कुछ दिन घर में ही गुजार लें। डॉ. नदीम फारूखी व डॉ. अय्यूब परवेज ने कहा हमने अपनी ओपीडी बंद कर रखी है और लोगों को मोबाइल पर ही एडवाइस दे रहे हैं।


कई निजी अस्पताल बंद, डॉक्टर छुट्टी पर, मरीजों को गेट से ही भगा रहे गार्ड


रिपाेर्ट-3 अस्पतालों से- मैं प्रणय चौहान । जानता हूं कि खतरों के बीच अपना पत्रकारिता धर्म निभा रहा हूं। इसलिए, क्योंकि मेरे परिवार के साथ-साथ भास्कर के लाखों पाठकों के परिवार को भी आज मेरी सबसे ज्यादा जरूरत है।


यूनिक हॉस्पिटल : अन्नपूर्णा रोड स्थित यूनिक हॉस्पिटल में हड्डियों व हार्ट का इलाज होता है। अस्पताल के गेट पर दो से तीन गार्ड हैं। जो लोगों को गेट से ही भगा रहे हैं। हॉस्पिटल स्टाफ ने बताया कोरोना के कारण हॉस्पिटल के सभी डॉक्टर्स ने छुट्टी ले ली है। जो मरीज पहले से भर्ती हैं, केवल उन्हीं का इलाज चल रहा है।
बॉम्बे हॉस्पिटल : डायलिसिस के एक मरीज ने बताया शुक्रवार सुबह बॉम्बे हॉस्पिटल में डायलिसिस करने के लिए गया था। दोपहर 12.30 बजे घर जाने के लिए ऑटो, बस, कैब या एम्बुलेंस नहीं मिली। डेढ़ घंटे बाद निजी गाड़ी वाले को हजार रुपए देकर घर पहुंचा। प्रशासन डायलिसिस, कैंसर, गर्भवती के लिए वाहन उपलब्ध कराए।
अरिहंत अस्पताल : गुमाश्ता नगर स्थित अरिहंत हॉस्पिटल को पूरी तरह बंद कर दिया है। अस्पताल प्रबंधन ने अस्पताल की दीवार पर सूचना लगा दी है कोरोना के कारण बंद है। पीड़ित महेश तिवारी ने बताया पत्नी का रात से पेट दर्द हो रहा है, सुबह अस्पताल लेकर आया तो गार्ड ने अंदर आने से मना कर दिया।


दुकानों पर सोशल डिस्टेंसिंग नहीं, दो मंजिला मकान में 35 सदस्य एकसाथ


रिपाेर्ट -4-बंबई बाजार से-मैं अमित सालगट। जानता हूं कि खतरों के बीच अपना पत्रकारिता धर्म निभा रहा हूं। इसलिए, क्योंकि मेरे परिवार के साथ-साथ भास्कर के लाखों पाठकों के परिवार को भी आज मेरी सबसे ज्यादा जरूरत है।


इंदौर में रविवार को बंबई बाजार की गलियाें में सोशल डिस्टेंसिंग नहीं दिखी। किराना दुकानों के बाहर, फल-सब्जी के ठेलों पर लोग ऐसे खड़े होकर खरीदारी कर रहे थे, जैसे कुछ हुआ ही न हो। कोई मास्क में तो कोई बिना मास्क के ही गलियों में सामान लेने पहुंच गया। बंबई बाजार पुलिस चौकी से अंदर आते ही लोगों की भीड़ गलियों में लगी हुई थी। महिलाएं भी घरों से बाहर सामान लेने के लिए आना-जाना कर रही थीं। बंबई बाजार में रहने वाले सलाम भाई से बात की तो बोले दो मंजिला मकान में 35 छोटे-बड़े सदस्य हैं। कोई ऊपरी मंजिल पर तो कोई नीचे वाले हिस्से में रहता है। सामान लेना भी जरूरी है। वे घर में मास्क का उपयोग नहीं करते है। मगर घर से बाहर निकलने पर मास्क पहनकर ही जाते है। इतना बड़ा परिवार होने के कारण सावधानी रख रहे है। यहां बाहर सामान लेने वाले लोग नहीं मानते है। सोशल डिस्टेंसिंग पर यहां कोई ध्यान नहीं दे रहा है। 



इधर, बंबई बाजार निवासी फारुक राइन कहते हैं घर में 15 सदस्य हैं। समस्या यह है कि क्लिनिक पर डॉक्टर नहीं आ रहे हैं। ऐसे में किसी की तबीयत खराब हो जाए या कोई अन्य तकलीफ हो जाए तो वे कहां दिखाने जाएं। दो दिन पहले यहां एक डॉक्टर अपने क्लिनिक पर आए थे। लेकिन बाद में उन्होंने भी आना बंद कर दिया। अगर यहां पर डॉक्टरों के क्लिनिक खुले रहे तो यहां के लोगों को सुविधा मिल सकेगी। क्षेत्र में किराना दुकान भी खुलती है और दूध की दुकान भी। पर लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं कर पा रहे हैं। जो फ्रिक की बात है। कुछ लोग तो बिना मास्क के ही यहां नजर आते हैं। यह गलत है।



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